भारतवर्ष में जुलाई के प्रथम सप्ताह में वन महोत्सव सप्ताह मनाया जाता है | इसे के एम् मुंशी के द्वारा संन 1950 में पर्यावरण के प्रति जागरूकता फ़ैलाने के उद्देस्य से आरंभ किया गया था | प्रयावन के महत्ता बताने वाला ये महोत्सव हमें जंगलो की आवस्यकता को दर्शाता है | अतः देश के विभिन्न राज्यों में फारेस्ट अधिकारी, करमचाइयो एवं आम नागरिको द्वारा पेड़ लगा कर इसे मनाया जाता है |
आज हम ऐसे समय में आ गए है जब पर्यावरण एंड मौजम परिवर्तन को लेकर विस्वव्यापी चिंताए बर गयी है | सभी देशो की सरकारे अपने अपने स्तर पर इस छेत्र में प्रयासरत है | नयी नयी सरकारी योजनाए बनायीं जा रही है जिसका उदहारण हम झारखण्ड में एक योजना से ले सकते है जिसमे फारेस्ट लैंड को बराने के उद्देस्य से बिरसा हरित ग्राम योजना की शुरुवात की गयी | जल जंगल जमीन यही तोह सबकी पहचान है | पर वर्तमान समय में हमने जारगुक होने में थोड़ा विलम्ब कर दिया | या यु कहे तोह एक प्रमुख उक्ति के अनुसम पेड़ो को लगाने का सही समय आज से २० वरस पहले था और दूसरा सही समय अभी का है |
जंगल वरन सिर्फ पर्यवारन और प्रकृति संतुलम का ही काम नहीं करते| ये तोह ग्रामीण जीवन में एक स्वरोजगार का भी साधन बनते है | आज के परिवेस में देश में ८० प्रतिसँ आवादी ग्रामीण छेत्रो पर बस्ती है और जंगल ही इनके आजीविका का मुख्य स्त्रोत है | इसको धयान में रकते हुए अभी वर्तमान समय में एग्रो फॉरेस्ट्री का सिद्धांत जोर पकड़ रहा है | एग्रो फोएस्ट्री में किसान ऐसे पेड़ो को लगते है जिससे फलो या उनसे तैयार उत्पादों को बेच सके जैसे आम के पेड़ रबर के पेड़ काजू के पैर | इससे परमपरागत कृषि के तुलना में ज्यादा अछि आमदनी होती है | इसके साथ साथ ऐसे उत्पादों के प्रचार प्रसार की भी आवस्यकता है | जैसे प्लास्टिक के बोतल के जगह विभिन्न प्रकार के बॉस के बोतल बनाये जाते है प्लास्टिक के पलटते के जगह साल के पेड़ के पत्तो का इस्तेमाल करना इत्यादि शामिल है | इससे प्लास्टिक प्रदूषण को घटने में भी सहायता मिलेगी | इस तरह हमें न सिर्फ ग्रामीण जीवन में बल्कि शहरी जीवन में भी प्रकृति के भूमिका को अपनाना होगा | इस दिशा में इकोलॉजिकल बेस्ड अडॉप्टेशन का सिद्धांत नया है जिसमे हम शहरी जगहों में पेड़ो और छोटे छोटे तालाबो का निर्माण के सिद्धांत को अपनाया जाता है | या यु कहे तोह एक पॉकेट फारेस्ट का निर्माण शहरी छेत्रो में एक अच्छा विचार है | इसके साथ साथ अब तोह भविस्य के स्मार्ट सिटीज के कांसेप्ट में हर अपार्टमेटणं में हर छोटे बेलकनी का कांसेप्ट आ रहा है जिसमे एक छोटा सा ग्रीन गार्डन बना रहेगा | यानि कहे अब वर्तमान पीढ़ी ये समझ चुकी है की यही हमें स्वस्थ रहना है तोह हमें अपने परिवेश में छोटे छोटे जंगलो का निर्माण करना होगा |
इन सभी नयी नयी उपायो के बावजूद ये भी हमें स्वीकार करना होगा की देश में आज मार्त्र २१ प्रतिसत ही फारेस्ट छेत्र है जो की ३३ प्रतिसत होना चाहिए | सरकार इस और प्रयास रत है पर हम नागरिको की भी ये भूमिका होनी चाहिए की हम अपने तरफ से इसमें परस्पर योगदान दे | हमें जन्मदिन एवं अन्य शुभ अवसरों पर पेड़ लगाने चाहिए | इसके साथ साथ कई NGO है जो पर्यावण के चैत्र में अद्भुत योगदान में रहे है जिसमे ग्रीनपीस, संकल्प तरु फाउंडेशन ईशा फाउंडेशन इत्यादि है | यदि हम अपना थोड़ा जरुरी समय निकलकर इन संस्थाओ के लिए वोलन्टीरर कर सके, इन्हे जरुरी आर्थिक सहायता प्रदान कर सके तोह ये पर्यावरण के प्रति एक कदम आगे लेने जैसा होगा |
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