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Showing posts from December, 2020

A sharp declining trend in carbon emission in 2020

According to a report published in DW, this year (2020) experiences a sharp decreasing trend of  carbon emission. The credit goes to lockdown imposed due to tackle noble corona virus (COVID19), which resulted in checking the traffic and industrial output, which resulted in a sharp decrease of carbon emission. Experts said that factories, transportation, aviation sectors are the major factors which causes huge pollution to the environment. Due to lockdown the pollution caused by these factors are totally checked. But when the total restriction will be lifted the situation will again return to same place. So only lockdown is not the only solution to the global climate change. It can act as temporary solutions but for a permanent it the duty of every citizen to work for it, such as work form home culture should be encouraged, limiting the usage of transportation,  using plastic free resources, encouraging the green energy platforms and minimizing the carbon footprint of every individual. 

Panna Tiger Reserve

आज हमलोग पन्ना टाइगर रिज़र्व के बारे में बात करेंगे। यह टाइगर रिज़र्व मध्य प्रदेश के पन्ना और छतरपुर जिले  में लगभग 542. 67 वर्ग किलोमीटर  फैला हुआ है। यह विंध्य पर्वत श्रेणियों के अंतर्गत  आता है। यह  रिज़र्व  पहले गंगऊ वाइल्डलाइफ सक्तुअरी के अंतर्गत आता था  जो की 1975 में बना था ।  बाद में सन 1981 में इसी वाइल्ड लाइफ सक्तुअरी के एरिया से पन्ना नेशनल पार्क  सन  1981 में अस्तित्व में आया। फिर चलकर 1994 में भारत सरकार  द्वारा इसे प्रोजेक्ट टाइगर रिज़र्व की श्रेणी में रखा गया।  और इस प्रकार पन्ना टाइगर रिज़र्व का अस्तित्वा आया।  यह टाइगर रिज़र्व पतझरी जंगलो, पठारों, और घास की हरी भरी घाटियों से भरा हुआ है जहा की प्राकृतिक सुंदरता आपका मन मोह लेगी। इस टाइगर रिज़र्व से होकर केन नदी बहती है जो की इस जंगल के सभी जीव जन्तुओ के लिए की जीवन दायिनी स्रोत है। यह आपको बाघों के अलावा तेंदुआ , नीलगाय , चिंकारा , चीतल, जंगली कुत्ते भेड़िए लकड़बग्गा भालू मिल जायेंगे।  इसे साथ साथ केन नदी घाटियों में घड़ियाल मगर एवं अन्य सरीसृप भी मिलते है। यह 200 प्रजातीओ के  विभिन्न प्रकार पंछिया पायी जाती है  जिसमे मुख्यत सरस

जर्मनी के जंगलो को बचाने की एक मुहीम

   दी डब्लू में प्रदर्शित एक डॉक्यूमेंटरी (जिसका लिंक नीचे  दिया गया है ) में जर्मनी के जंगलो में जलवायु परिवर्तन के कारण  होने कारण नुकसान को दर्शाया गया है। जर्मनी  का एक बड़ा हिस्सा जंगलो से घिरा है मगर जलवायु की मार पड़ने से यहां के जंगल सूखते जा रहे है जिससे परिस्थितिया और भी गंभीर होती जा रही है।  गर्मिया बड़ रही है और भूगर्भ जल का स्तर निचे चला जा रहा है।  इन परेशनियो को देखते हुए गोएथे विस्वविद्याल के एक वैज्ञानिक वोल्फगांग बुणगमन, जंगल अधिकारी एवं पर्यावरणविदों की सहायता से एक हल निकला है।  जर्मनी के इन जंगलो में चीड़  और बालोत के जगह ऐसे पेड़ लगाए जा रहे है जो ज्यादा गर्मी झेल और कम पानी में भी रह सके।  इसके मदद से इस देश में घटती जंगलो की समस्या से भी निजात पाया जा सकेगा।  Video Link

गुरगाओ और दिल्ली के बीच बसता जंगल

 दी डव्लू में निर्मित एक डॉक्यूमेंट्री (जिसका लिंक नीचे  दिया गया है ) में पर्यावरण को लेकर एक पर्यावण प्रेमी विजय धस्माना के महत्वपूर्ण योगदान को दर्शाया गया है। दिल्ली गुडगाँव का छेत्र को दुनिआ में सबसे प्रदुसित इलाको में गिना जाता है.  वहा अब  इनके सार्थक प्रयास से इस कंक्रीट के जंगलो  के बीच एक 380 एकर में जंगल तैयार किया गया है।  विजय जी का कहना है की इस पूरी बायोडायवर्सिटी पार्क एक बंजर जमीन पर बननी सुरु हुई और आज इसे पूरी तरह फलने फूलने में 10  साल लग गए। आज यह जंगल जैव विविधता का उदहारण पेश कर रहा है।   अब यहाँ विभिन्न प्रकार के पंखियो और सरीसृपों का प्रजनन होता है। कुछ इसी प्रकार का प्रयास राजीव सूरी के द्वारा  दिल्ली के ही डिफेंस कॉलोनी को हरा भरा करने में है जो की एक समय कुरे कचरे का ढेर बन गया था।  मगर राजीव जी के अथक प्रयास से आज वहा एक छोटा सा ग्रीन पार्क बन गया है।  इस डाक्यूमेंट्री को जरूर देखे।   DW documentary Video link

एक भारतीय परिवार का पर्यावण के लिए अभूतपूर्व प्रयास

  आज हम बात करेंगे एक ऐसे भारतीय परिवार की जिन्होंने अपने भारतीय प्रशासनिक सेवा की नौकरी छोड़ पर्यावण संरक्छक बन गए । आदित्य सिंह और पूनम सिंह ने राजस्थान के सवाई माधोपुर में रणथंबोर टाइगर रिज़र्व के समिट ४० एकर की जमीन खरीदी फिर उसे उसी अनुकूल छोड़ दिया।  २० साल के समय अंतराल के बाद वो जगह पूरी तरह एक जंगल के रूप में परिणत हो गया।  इसके साथ साथ वह दो तालाब प्राकृतिक रूप से बन गए।  इसी जंगल में फिर अन्य प्राणी जैसे नीलगाय हिरन बाघ का  भी आना आरम्भ हो गया क्योकि यह जगह रणथम्बोर टाइगर रिज़र्व के समीप है।  इस परिवार ने एक बहुत ही बेह्तरीह उदाहरण पेस किया है पर्यावरण और वन्य प्राणी संरक्षण के चैत्र में जो को बहुत सराहनीय कदम भी है। इस प्रकार के निजी जंगलो का विचार हमारे देश में बिलकुल नया है। हमारे देश में जो भी अन्य जंगल है वो सरकार द्वारा नियंत्रित है।  पर इसप्रकार के निजी जंगलो का विचार संरक्षण के साथ साथ विभिन्न ग्रामीण छेत्रो में रोजगार के अवसर भी पैदा करता है।  ये टूरिज्म को बरवा देकर लोगो को प्रकृति के प्रति जागरूक करता है। आज जहा देश में २५ प्रतिसत फारेस्ट कवर है और सरकार ने इसे ३३ प्र

Green movement in Indian Railways

 दोस्तों जैसा की हम सभी आज के पर्यावरण के असंतुलन से परिचित है और हम सभी अपने अपने तरफ से जो भी संभव हो छोटा छोटा प्रयास कर रहे है।  इसी कड़ी में भारतीय रेलवे भी कदम से कदम मिला कर आगे बर रही है। आज सरकार द्वारा कई रेलवे के चैत्र में पर्यावण को मद्दे नजर रखते हुए कई क्रन्तिकारी निर्णय लिए जा रहे है।  आज रेलवे  इंजिन क़ी  बिद्युतीकरण की निति को अपना  कर कई मार्गो में सफलपूर्वक इलेक्ट्रीक  इंजिन का प्रयोग कर रही है और धीरे धीरे डीज़ल इंजिन की उपयोगिता को घटा रही है। सरकार द्वारा २०३० तक में रेलवे के द्वारा जीरो कार्बन एम्मिशन के लक्ष्य को रखते हुए सभी रेलवे के कोच में बिओटोइलेट की सुविधा का होना, tube lights के जगह LED लाइट्स का प्रयोग करना, train को ज्यादा energy efficient बनाना जिससे इसमें काम बिजली की खपत हो, इत्यादि सम्मिलित है।  इसके साथ साथ रेलवे द्वारा अपनी भूमि पर सोलर पावर स्टेशन और पवन ऊर्जा के पावर स्टेशन (जो की नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत है ) को बनाना निहित है जिससे ट्रैन और स्टेशन इन जगहों की बिद्युत की आपूर्ति की जा सकें।  इसके साथ साथ स्टेशन और उसके परिसर में  में roof top सोलर

15 minute city plan to create a green city

                                    वर्ल्ड इकनोमिक फोरम में जारी वीडियो (जिसका लिंक ऊपर दिया गया है ) में फ्रांस की राजधानी पेरिस में पर्यावरण को लेकर एक मत्वाकांशी योजना को दर्शाता है। इसे 15 मिनट सिटी पेरिस कहा गया है।  यह इस विचार पर आधारित है की शहर के संरचना कुछ इस प्रकार की जाएगी ताकि आपकी जरुरत की हर चीज़ शहर के 15 मिनट पैदल के दुरी में उपलब्ध रहेगी।  यह कदम सड़कों में परिवहन की संख्या को कम  कर प्रदूषण के स्तर  को काम करने का उपाय है। इसके साथ साथ सरकार परिवहन के लिए उपलब्ध पार्किंग को भी सिमित कर सड़को में बाइसिकल के लिए लें भी बनाएगी। ये आज की बरती पर्यावण की समस्या को देखते हुए एक मत्वपूर्ण कदम है। इस परियोजना को हमारे देशो में लगाया जाना चाहिए और साइकिल पर निर्भरता को बराय जाना चाहिए। पर सरकार से पहले ये स्थानीय नागरिको का दायित्वा है की वो इन उपायों को बढ़ावा दे और स्थानीय तौर पर इन्हे प्रयोग में लाये। 

PM interacts with Forestry students and raised the positive side of forestry.

  In a recent interaction of honorable prime minister Narendra modi with a students of foresty on 29 August 2020, the prime minister applauded the students for the their dedication to pursue forestry related subjects. In this conversation,  PM discussed  the challenges about how to increase and conserve the forests cover in our country and the solution regarding the forest fires, which causes huge loss to biodiversity. PM also highlighted the problem faces by officers and staff of line of duty in the forest area. He also addressed the his recent decisions about conservation of Dolphins and lions, which he announced on 15th of August. In this conversation PM subjected the need and importance of forestry related subjects in near future as per career growth among the youths.  Recently the youth of India has shown considerable passion toward the reforestation, rural development works. Many NGOs with the help of volunteers are working all over the country to make the earth a better place to

International Day for the Conservation of the Mangrove Ecosystem

 प्रतिवारस 26 जुलाई को अंतरास्ट्रीय  मैन्ग्रोव पारितंत्र संरक्षण दिवस मनाया जाता है। दोस्तों जैसा की आप सभी जानते ही होंगे की मैन्ग्रोव वन  उन्हें कहते है जो उन जगहों में पाया जाता है जहा कोई नदी सागर में मिलती है और यह मीठे और खारे पानी के मिश्रित पानी में फलता है। इसके जड़े पानी से उचे उठी हुए और आपस में उलझी हुई होती है। हमारे देश में एक लम्बी तट रेखा होने के कारण यहाँ तटीय छेत्रो में मैन्ग्रोव वन की बहुतायत है।  चलिए जानते है मैन्ग्रोव फारेस्ट के क्या क्या फायदे है।  १. यह पारम्परिक वनो की तुलना में ६-८ गुना ज्यादा कार्बन सोखते है क्योकि  ये अपने जड़ो के मृदा में बहुतायत में कार्बन के भंडार को सोखे रखते है।  २. यह असंख्य जलीय जीवो के प्रजनन में सहायक होते है। इनकी जड़े उन जीवो के लिए अहम् भोजन आहार के स्त्रोत का काम  करते है तथा  उन्हें संरक्षण भी  देते है।    ३. यह असंख्य पंक्षियों का वास् स्थान व् है एवं यहाँ सभी प्रकार के अति दुर्लभ प्राणी भी  मिल जाते है।  ४ . यह नदियों के रास्ते आने वाले कचरे को समंदर में जाने से रोकते है जिससे समंदर में प्लास्टिक प्रदूषण एवं अन्य इसी वर्ग के प्र

Ice stupta: An approach

 In a story published in  national geographic megazine , highlights the problems faces by the people who lived in the high altitude area of Ladakh. The people are the most vulnerable for the climate change. Even the 1 degree Celsius increase in the temperature has caused huge negative impact on the glaciers of the Himalaya since few years. Now with the melting of ice with the rise temperature the community is facing the scarcity of water in summer times. Even this part of the land also not graced with the monsoonal clouds and the annual rain fall is very less in comparison to other parts of the country. During the winter occasion the soil is also in frozen state which do not allow the proper irrigation to that period and in the summer times the ice got dried up which results in scarcity of water in this Himalayan regions. Taking this problem as a challenge an engineer, environmentalist, re-formalist  Sonam_Wangchuk   came with a brilliant idea to solve this water scarcity problem Himal

Cluster canopy

 आज हमलोग क्लस्टर कैनोपी के विषय में चर्चा करेंगे | यह शहरी छेत्रो में एक छोटे छोटे जंगल या कहे पॉकेट फॉरेस्टेशन पर  आधारित है | इसमें शहरी छेत्रो में ही कुछ पौधों को एक साथ एक मुठे में या यु कहे एक समूह में बांध दिया जाता है और उस पुरे पौधे के मुठे को ही रोप दिया जाता है | फिर चार पांच साल बाद पेड़ बड़े हो जाते है तोह इनके ऊपरी हिस्से की सतह काफी फैल जाते है | इससे एक छोटे से जगह में ही काफी घनी जगलनुमा पर्यावरण का निर्माण होता है |  ये पंछियो को अपनी और आकर्षित करते है और साथ साथ ज्यादा घने होने के कारन इनके निचे के घास में काफी हरे भरे होते है | अतः ये मृदा अपरदन एंड जल संचयन में काफी अहम् भूमिका निभाता है | अगर इसमें फलदार वृक्ष को महत्ता दी जाये तोह ये एग्रोफोरेस्ट्री के दृस्टि से एक अच्छा आय का भी स्रोत बन सकता है | इसके साथ साथ चुकी ये जमीं में काफी कम  जगह लेते है सो इस सिद्धांत को वैसे छेत्रो में भी लगाया जा सकता है समुचित जगह की कमी है | 

Van mahotsav week

 भारतवर्ष में जुलाई के प्रथम सप्ताह में वन महोत्सव सप्ताह मनाया जाता है | इसे के एम् मुंशी के द्वारा संन 1950 में पर्यावरण के प्रति जागरूकता फ़ैलाने के उद्देस्य से आरंभ किया गया था | प्रयावन के महत्ता बताने वाला ये महोत्सव हमें जंगलो की आवस्यकता को दर्शाता है | अतः देश  के विभिन्न राज्यों में फारेस्ट अधिकारी, करमचाइयो एवं आम नागरिको द्वारा पेड़ लगा कर इसे मनाया जाता है | आज हम ऐसे समय में आ  गए है जब  पर्यावरण एंड मौजम परिवर्तन को लेकर विस्वव्यापी चिंताए बर गयी है | सभी देशो की सरकारे  अपने अपने स्तर  पर इस छेत्र में प्रयासरत है | नयी नयी सरकारी योजनाए बनायीं जा रही है जिसका उदहारण हम झारखण्ड में एक योजना से ले सकते है जिसमे फारेस्ट लैंड  को बराने  के उद्देस्य से बिरसा हरित ग्राम योजना की शुरुवात  की गयी | जल जंगल  जमीन यही तोह सबकी पहचान है | पर वर्तमान समय में हमने जारगुक होने में थोड़ा विलम्ब कर दिया | या यु कहे तोह एक प्रमुख उक्ति के अनुसम पेड़ो को लगाने का सही समय आज से २० वरस पहले था और दूसरा सही समय अभी का है |  जंगल वरन सिर्फ पर्यवारन और प्रकृति संतुलम का ही काम नहीं करते| ये तोह ग

Ecosystem based adaptation

 Today, the climate change and environmental issues are the important topic of discussion among the conversationalist. The governments are coming with different different policies, organizations are inventing new ideas to cope up with these challenges. Everyday new environmental rules and laws are being formulated.  In this scenario " The Ecosystem based adaptation " is the best way to fight the challenges of global environment problems. It is like providing the solution in natural and ecological way. For example instead of building reservoir for checking flood or building structure to prevent coastal areas from being submerged into the seas. The ecosystem based adaptation provides a more cheaper way to solve the problem, which totally depend upon sustainable development of ecology. Its principle based upon proper forestation and sustainable management of natural resources such as water, trees and agricultural land. It includes the afforestation strategy in all types of human